..:: रिश्वत ::..
रधिया,
अपने माँ-बाप की गरीबी से तंग ।
शराबी बाप का,
रोज-रोज हुड़दंग ।
बेरोजगार भाई की,
आँखों में सपना ।
होता क्यों नहीं,
कोई नौकरी भी अपना ।
लेकर अपने भाई की,
नौकरी की आस ।
चल पड़ी रधिया,
एक अफसर के पास ।
लेकिन वाह री किस्मत,
लूट ली गई अस्मत ।
रधिया मौन थी पर,
ये गरीबी की नय्या है,
खेना ही पड़ता है ।
पैसा नहीं दे सकते,
तो आबरू ही लुटा दो ।
नौकरी के लिए रिश्वत
देना ही पड़ता है ।
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श्री मिथलेश शर्मा 'निसार'
अरजुन्दा, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
मो. 9755057245
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