वो मरेगा नहीं, बेहोश हो गया होगा ।
तन्हा जीने का अफसोस हो गया होगा ।।
हवा बड़ी बैचेन है, बोसुद बह रहा है ।
उसके पहलू को, शायद छू लिया होगा ।।
महक है गजब की धार में दरिया के ।
गेसूओं को अपनी, उसने धो लिया होगा ।।
नींद क्या आएगी, गमजदे को इक भला ।
याद में बोखुद, कुछ देर खो गया होगा ।।
सोडहं ये सागर खारा ही खारा है ।
किनारे बैठे कर, कोई रो गया होगा ।।
मिथलेश शर्मा निसार