शुक्रवार, 26 मार्च 2010

गजल

वो मरेगा नहीं, बेहोश हो गया होगा ।
तन्हा जीने का अफसोस हो गया होगा ।।
हवा बड़ी बैचेन है, बोसुद बह रहा है ।
उसके पहलू को, शायद छू लिया होगा ।।
महक है गजब की धार में दरिया के ।
गेसूओं को अपनी, उसने धो लिया होगा ।।
नींद क्या आएगी, गमजदे को इक भला ।
याद में बोखुद, कुछ देर खो गया होगा ।।
सोडहं ये सागर खारा ही खारा है ।
किनारे बैठे कर, कोई रो गया होगा ।।

मिथलेश शर्मा निसार

दुनिया में कहां-कहां...


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