
श्री उम्मेद सिंह कलिहारी दुर्ग जिले के उन गिने-चुने लोंगो में से एक है जिन्हे 1930 के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने का मौका मिला था । गाँधी जी के व्यक्तित्व से अभिभूत श्री कलिहारी अक्सर कहा करते थे कि मैंने अपने संघर्ष पूर्ण जीवन में भूदान,ग्राम दान तथा ग्राम स्वराज आन्दोलन में भाग लेकर संगम स्नान कर लिया । महात्मा गाँधी के पहली बार के दुर्ग आगमन पर उनसे मुलाकात को वे कभी नही भूले ।
श्री उम्मेद सिंह कलिहारी का जन्म सन् 1905 को ग्राम भरदकला में हुआ । ग्राम अर्जुन्दा में छटवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त करने के प्रश्चात अर्जुन्दा में ही सहायक शिक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई । शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित हुए एवं देश प्रेम की भावना लिये आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े और लोगों के बीच आजादी के महत्व को बताना शुरू किये । 1942 में महात्मा गांधी के करो या मरो के नारे को बुलंद करते हुए आजादी की लड़ाई में कूद पड़े । आन्दोलन अपने चरम सीमा पर था तभी श्री कलिहारी को पुलिस ने गिरफ्तार कर रायपुर सेन्ट्रल जेल भेज दिया 9 माह की लंबी सजा अगस्त 1943 तक चली । जेल से रिहा होकर पुनः स्वतंत्रता आन्दोलन को गति प्रदान करते रहे । क्षेत्र के लोंगो को भी कलिहारी द्वारा प्रचारित आजादी की बातें समझ आने लगी इस तरह से श्री कलिहारी शिक्षकीय जीवन छोड़कर देश की आजादी के लिए अर्जुन्दा सहित दुर्ग जिले भर में कार्य करते रहे और आजादी को प्राप्त किये ।
देश की स्वतंत्रता के पश्चात देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा दिये गये आदेश के तहत श्री उम्मेद सिंह कलिहारी की पुर्ननियुक्ति अर्जुन्दा के स्कूल में ही हुई एवं आजादी के बाद दुर्ग जिला शिक्षक संघ के अध्यक्ष का दायित्व भी पूरा किया एवं कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान भी कराये । सन् 1955 में श्री कलिहारी संत विनोबा भावे के साथ जुड़ गये एवं उनके प्रसिद्ध भूदान आन्दोलन में सक्रियता के साथ जुड़कर विनोबा जी के हीरक जयन्ती के अवसर पर श्री कलिहारी द्वारा दुर्ग जिले के पचास हजार के लक्ष्य में सैतालिस हजार रूपये संग्रहित कर विनोबा भावे जी को भेंट किये । श्री कलिहारी हमेशा संयमित जीवन जीते रहे इनके द्वारा महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष की पुण्यतिथि के अवसर पर संकल्प लिये की आज से मशीन से पीसा हुआ आटा, मशीन का चावल एवं शक्कर ग्रहण नहीं करना जिसका पालन वे जीवन पर्यन्त करते रहे । वे गांधी जी से अत्यंत ही प्रभावित रहे जिसके फलस्वरूप अपने शिक्षकीय जीवन में ही उन्होनें चरखे से सूत कातना शुरू कर दिये थे । गांधी टोपी तो वे विद्यार्थी जीवन से ही पहनते थे ।
क्षेत्र के एकमात्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री उम्मेद सिंह कलिहारी का देहावसान 28 अगस्त 1994 को हुआ । उनके द्वारा आजादी के पूर्व एवं आजादी के बाद देश एवं समाज के लिये किये गये सेवा कार्य को पुण्य स्मरण करते हुए सादर प्रणाम .......।
साभारः श्री क्रांतिभूषण साहू (प्रपौत्र श्री उम्मेद सिंह कलिहारी) सरपंच,ग्राम पंचायत भरदाकला से प्राप्त जानकारी के आधार पर