आधुनिक परिवेश में,आज के चकाचौंध की इस दुनिया में फैशन के नाम पर सावन के महिनें में, गणेश प्रतिमा स्थापना या नवरात्रि में दुर्गा प्रतिमा स्थापना, दशहरा के नाम पर लाखों-करोड़ों रूपये खर्च कर दिये जाते हैं । परंतु हम अपनी पुरातन महत्व की मंदिरों एवं मूर्तियों को संरक्षित नहीं कर पाये । कुछ दिनों पूर्व मुझे ग्राम जगन्नाथपुर से होते हुए बालोद जाना था ग्राम जगन्नाथपुर मेरे ग्राम परसतराई से दक्षिण दिशा में करीब 15 किमी. की दूरी पर स्थित है और बालोद से उत्तर की ओर 12 किमी की दूरी पर स्थित है इस ग्राम से गुजरते हुए मुझे राज्य शासन द्वारा लगाया गया एक सूचना पटल दिखाई दिया जिसे मैंने उत्सुकतावश रूककर देखना चाहा ।

मैंने अपने दुपहिया वाहन से कुछ देर रूककर प्राचीन मंदिर, मंदिर में स्थित भगवान गणेश जी एवं शिवलिंग के दर्शन किये । यह मंदिर 13-14वीं शताब्दी का है।



जिन्हें छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारक पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1964 का (12) तथा नियम 1976 के अधिन राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। ग्राम के प्राचीन तालाब तट पर स्थित यह मंदिर शासन एवं लोगों की उपेक्षा का शिकार है । और धीरे-धीरे खंडहर होते जा रहा है। मंदिर की दीवारों की छत व खंभों में दरारें पड़ गई है।



जीर्णोद्धार कार्य पुराने मंदिरों के अवशेषों से किया गया है किए गए प्लास्टर भी उखड़ रहे है देखरेख न होने के कारण शरारती तत्वों द्वारा भी इसे नुकसान पहुँचाया जा रहा है जो मंदिर की प्रतिमा,छत एवं खंभो को भी क्षतिग्रस्त कर रहे है किसी-किसी के द्वारा अपने नाम या अपनी प्रेमी-प्रेमिका के नाम को लिखा गया है ।

कुल मिलाकर राज्य शासन एवं संबंधित विभाग द्वारा इस प्राचीन महत्व की मंदिर को संरक्षित घोषित कर अपना पल्ला जरूर झाड़ लिये है परंतु वास्तविकता में यह प्राचीन मंदिर अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है ।