शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

सपनों की उड़ान

उस दिन रामू नदी किनारे बैठकर सपनों की दुनिया में खोया था । अपने सपनों को नदी के बहते पानी और कंकड़-पत्थर से साझा कर रहा था । दरअसल रामू अपनी गरीबी और अकेलेपन से उब चुका था। रामू जब पाँच साल का था और अपने माता-पिता के साथ अपने मामा के घर जा रहा था रास्ते में बस दुघर्टनाग्रस्त हो गई । रामू के माता-पिता दोनों चल बसे रामू अनाथ हो गया । उसके जीवन यापन की जिम्मेदारी उसके मामा के ऊपर आ गयी,मामा के परिवार में मामाजी और एक बूढ़ी नानी । नानी बड़ी ही ममतामयी और मामा कंस की तरह उतना ही खूंखार । मामा का व्यवहार दो सालों में और बदल गया क्योंकि अब रामू की मामी जो आ गयी थी । मामा और मामी का व्यवहार रामू और नानी के प्रति अच्छा नहीं था । रोज-रोज खाने,कमाने के नाम पर मामी,रामू और नानी माँ को डाँट-डपट करती । उनका जीवन अब नरक जैसा लगने लगा । थक हारकर रामू और नानी माँ ने एक दिन पहट को घर छोड़ने का फैसला किया और मीलों दूर नदी के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने लगे । नदी किनारे से एक सड़क निकलती थी जो सीधे एक कस्बे में जाकर मिलती थी । रामू अब लगभग सात साल का हो गया था रामू रोज सबेरे नदी के किनारे बैठा करता और उन बच्चों को देखता जो रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर अंग्रेजी के कविताओं और गानों को गाते हुए सड़क से गुजरते थे । रामू सपने देखता कि वह भी इन बच्चों की तरह ऐसे ही स्कूल जाये पर कैसे ? बह तो गरीब था खाने का इंतजाम तो ले देकर होता था तो पढ़ कैसे पायेगा । उसका सपना समय के भंवर में डूब जाती और अपनी बूढ़ी नानी के साथ जंगल की ओर चल देता दिन भर लकड़ी इकट्ठा करता और उसी कस्बे में नानी के साथ बेचकर दूसरे दिन का जुगाड़ करता । रामू और नानी माँ के दैनिक जीवन में इसके अलावा और कोई काम नहीं था लकड़ी इकट्ठा करते और उसे बेचकर अपनी जीवन यापन करते । एक दिन गली से गुजरते हुए खिड़की से आवाज आई...अम्मा ! तुम्हारे लकड़ी का क्या दाम है ? नानी माँ रूक गई और उससे लकड़ी का सौदा कर लिया तभी उस सज्जन की नजर रामू पर पड़ गयी । वह पेशे से टीचर था रामू को देखकर उसने उम्र का अंदाजा लगाकर बोला - बेटा !क्या तुम स्कूल जाते हो ? प्रश्न को सुनकर मानों रामू को साँप सूंघ गया रामू अपनी उस सपनों की दुनिया में चला गया जिसे वह स्कूल के जाते हुए बच्चों को देखकर देखता था । रामू को चुपकर देखकर टीचर ने प्यार से फिर वही पूछा -बेटा!क्या तुम स्कूल जाते हो ? रामू ने जवाब इस बार सिर हिलाकर नहीं में दिया । नहीं में जवाब पाकर टीचर को बहुत बुरा लगा उसने नानी से पूछा-क्यों अम्मा आप इसे स्कूल क्यों नहीं भेजते ? अम्मा ने टीचर को सारी बातें बता दी । टीचर को समझते देर नहीं लगी उसने दोनों को अपने घर में बैठने कहा और सरकार के निःशुल्क और बाल शिक्षा के अधिकार को बताया । टीचर की बातें सुनकर मानों रामू के सपनों में पंख लग गये । वह फिर वही सपने देखने लगा मैं भी उन बच्चों जैसे कपड़े पहनूंगा और रोज नये-नये गाना गाऊंगा । टीचर ने उन दोनों को पास के एक सरकारी स्कूल ले गये जहाँ रामू का एडमिशन करा दिया । उस दिन स्कूल में शाला प्रवेश उत्सव मनाया जा रहा था कस्बे के बड़े-बड़े लोग आये हुए थे उनके सहयोग से बच्चों को कापी-पुस्तक के साथ स्कूल गणवेश भी वितरण किया जा रहा था । आज रामू को मानो अपना संसार मिल गया वह अपनी नानी माँ के साथ रोज स्कूल आता नानी घूम-घूम के लकड़ी बेचती और शाम को फिर रामू को लेकर घर चल देती ।

- सुभाष गजेन्द्र

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