वो मरेगा नहीं, बेहोश हो गया होगा ।
तन्हा जीने का अफसोस हो गया होगा ।।
हवा बड़ी बैचेन है, बोसुद बह रहा है ।
उसके पहलू को, शायद छू लिया होगा ।।
महक है गजब की धार में दरिया के ।
गेसूओं को अपनी, उसने धो लिया होगा ।।
नींद क्या आएगी, गमजदे को इक भला ।
याद में बोखुद, कुछ देर खो गया होगा ।।
सोडहं ये सागर खारा ही खारा है ।
किनारे बैठे कर, कोई रो गया होगा ।।
मिथलेश शर्मा निसार
nice
जवाब देंहटाएंकृपया सुधार करें
जवाब देंहटाएंमरेगा की जगह भरेगा लिख गया है
और एक बात आपसे कहना चाहूँगा, आपकी ये रचना गजल नहीं है
दरअसल गजल लिखने के कुछ नियम जिअसे रदीफ काफिया बहर आदि होते है जिनका पालन करना जरूरी होता है
वैसे आपका कहन बहुत स्पष्ट है और भाव सुन्दर