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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

कथा संसार - नीम का पेड़

मैं नशीफा और सलमा के यहां अक्सर खेलने जाया करती थी । मां-बापूजी हमेशा बोला करते थे बेटा हालात ठीक नहीं है तुम घर पर ही रहा करो । अगर मैं नशीफा और सलमा के यहां नहीं जा पाती तो उन लोग मेरे यहां आ जाया करती थी । हमारा समय अक्सर गुड्डा-गुड़िया खेलने में बीतता था । एक दिन मैं भी नशीफा और सलमा के यहाँ खेलने चली गयी । हम खेल रहे थे की अचानक जोरों से शोर आने लगी मारो-मारो घर जला दो थोड़ी देर में मिट्टी तेल की बू आने लगी नशीफा और सलमा के अब्बा-अम्मी डर कर कांपने लगे और हम तीनों को बाहों में जकड़कर रख लिया । दंगाई दरवाजा को जोर-जोर सेल लात मार रहे थे । अब्बा-अम्मी को कुछ नहीं समझ आ रहा था । हम तीनों को उठाकर पीछे के दरवाजा से निकलकर छुपते-छिपाते वहां से भागकर दूर चले गये जहां से नशीफा और सलमा का घर दूर से जलता दिखाई दे रहा था । और मैं जोर-जोर से मां-बापु जी के पास जाने के लिये रो रही थी । अब्बा-अम्मी मुझे प्यार से समझा बुझाकर रात भर जंगल में अपने पास रखा अब हालात और बिगड़ चुके थे । हम वापस अपने घर जाने के स्थिति में नहीं थे। हम सब की जान बचाकर अब्बा-अम्मी हमें भारत ले आये । जब सुबह का सूरज उगा तो हम दिल्ली में थे ।

धीरे-धीरे दिन बितने लगा हालात काबू में आने लगे । समय के साथ-साथ अब हम भभी बड़े हो गये कुछ साल-दो साल के बाद स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो गई थी । मैं अब मां - बापु जी को भूल चुकी थी। धुंधली सी याद आज भी मन के एक कोने से उठकर कभी-कभी आ ही जाती था । अब्बा हमारा एडमिशन कराने एक शासकीय स्कूल में कराने ले गये। नशीफा और सलमा का नाम लिखाने के बाद मेरा नाम लिखाया शिवानी तिवारी पिता का नाम इकबाल रिजवी । एक पल के लिए शिक्षक की कलम आश्चर्य से रूक गई । बड़े अचरज भाव से अब्बा से पूछ बैठे अरे ऐसा कैसे नशीफा और सलमा के पिता का नाम भी इकबाल रिजवी और शिवानी तिवारी के पिता का नाम भी इकबाल रिजवी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा । अब्बा ने बड़े दर्द भरे बातों से शिक्षक को सारी कहानी बताई और अंत में अब्बा की जुबान लड़खड़ाते हुए गला रूंध सा गया था । उन्होनें धीरे से आंख से आंसू पोछा शिक्षक को समझते देर नहीं लगी । भाई इकबाल हमें आपके ऊपर हमदर्दी है । हमसे जो बन पड़ेगा हम अवश्य करेंगे हम आपके साथ हैं । अब्बा जी हाथ जोड़कर वाले कुम सलाम बोलकर हम तीनों को साथ चले गये । घर पर अम्मी ने सभी से के लिए चपाती बनाकर तैयार रखी थी । खाते खाते अब्बा ने अम्मी से बड़े प्यार से कह रहे थे । सलमा की अम्मी आज लग रहा है कि हम पूरी तरह से आजाद हैं । आज मन में थोड़ा खुशी का खुमार आया है आज मन हल्का लग रहा है । अब धीरे से हमारी जिंदगी में खुशियां आ जाएगी । आज काफी दिनों बाद अब्बा-अम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट देखी ।

आज हम सब बहुत खुश थे । दिन बातने लगे हम ऊंची कक्षा में पहुंच गये थे । नशीफा 8 वीं कक्षा में सलमा 10 वीं और मैं 12 कक्षा में थी । अब्बा को दिल की बीमारी थी एक दिन अचानक अब्बा के सीने में जोर की दर्द उठा और अब्बा जान वहीं जमीन पर गिर पड़े और जीवन भर के लिए उठे नहीं । जब हम स्कूल से घर आये तो घर पर मोहल्ले के लोगों को देखे सब के चेहरे गम्भीर थे । हमको कुछ अनहोनी की आशंका ने घेर लिया । जैसे ही घर की चौखट पर कदम रखा कि अम्मी की दहाड़ मारक रोने की आवाज और भी तेज हो गयी हम अब्बा की लाश देखकर लाश बन गये । हाथ पैर सुन्न पड़ गये रो नहीं पा रहे थे । अम्मीजान को ढांढस बंधा रहे थे । थोड़ी देर बाद चार लोग अब्बा को कंधा पर उठाकर चल पड़े । फिर से एक बार वहीं दंगे भरा दिन काले साये का तूफान लेकर आया था । सब कुछ खत्म हो चुका था । अब बेसहारा हो चुके किसी तरह कुछ दिन बीते । अब हमारे सामने चार लोगों की जीविका का साधन जुटाना बहुत मुश्किल हो रहा था । अब घर में अम्मी के व्यवहार में धीरे-धीरे मेरे प्रति बदलाव आने लगा था । क्योंकि मैं पराई थी और हिन्दू थी । एक दिन अचानक अम्मी ने गुस्सेभरी आवाज में कहा- शिवानी आज तुम स्कूल जाना बंद कर दो सिलाई-कढाई में साथ दो ताकि दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो सके । मैं दंग रह रई । मैने दूसरे दिन से स्कूल जान बंद कर दिया । सिलाई कढाई का काम भी उतना नहीं चलता था । अम्मी बोली शिवानी तुम अब बाहर काम पर जाया करो । ताकी कुछ पैसा घर पर आ सके । मैं भी हालात
को देखत हुए सुबह काम की तलाश में निकल कर गई जहां पर जाती लोग मुझे गंदी निगाह से देखते । घर आकर अम्मी को बताती । अम्मी तो उल्टे मुझे ही दोष देती । अम्मी कुछ खाने को है । अम्मी कहती - हां जा देख ले, तेरे लिए तो कई प्रकार से व्यंजन बनाये हैं । अम्मी बातों-बातों में टांट मारती । किचन पर जाकर देखा तो कई दिनों की सुखी रोटी रखी थी जो दांत से चबाई भी नहीं जाती थी । भूख मिटाने के लिए पानी में भिंगोकर खाई । अम्मी का व्यवहार दिन ब दिन बदलते जा रहा था । नशीफा और सलमा भी मुझसे ठीक से बात नहीं करती थी । अब मेरे मन में कई तरह से सवाल उठ रहे थे । क्यों न मैं आत्महत्या कर लूं या कहीं चली जाऊं ।

लेकिन अंत में यही बात याद आ जाती जब हम छोटे थ तो अब्बाजान सिखाया करते थे कि बेटा हमारे जीवन में कितनी भी समस्याएं क्यों न आ जाए, हमें हार नहीं माननी चाहिए । अस मुसीबत का डट कर मुकाबला करना चाहिए । हर एक के जीवन में में दुःख आता है । उसी प्रकार दुःख के साथ खुशी आती है । इन सब बातों को याद कर मैं शांत रह जाती । मैं अक्सर एक नीम के पेड़ की छाया के नीचे बैठकर अपनी थकान मिटाती था । जिसके सामने एक बहुत बड़ी मल्टीप्लेक्स कम्पनी थी । जहां के कर्मचारी बड़ी-बड़ी गाडियों से आना-जाना करते थे । मुझे ये सब देख बड़ा सुकून मिलता था ।

अचानक एक दिन बड़ी सी गाड़ी मे बैठते वक्त एक साहब का मोबाइल गिर गया । मैनें आवाज देने की कोशिश की लेकिन रोज की तरह भूखी ।मेरे मुंह से आवाज नहीं नकली मैने मोबाइल उठाकर अपने पास रख लिया । ताकि उस साहब को कल सुबह वापस कर दूँ । शाम के 5 बज चुके थे जैसे ही मैने घर की चौखट पर पैर रखा मोबाइल की घंटी बजनी शुरू हो गई । अम्मी के सिलाई मशीन के पहिए थम गये । घर में एक सन्नाटा पसर गया नशीफा और सलमा, अम्मी कई सवालों भरी निगाह से देखने लगे । अम्मी मुझे गुस्से से भरे सवाल दागने लगी ए किसका मोबाइल है, तुझे कहां से मिला, यहां हमारे पास खाने के लिए पैसा नहीं है और तू मोबाइल रखती है । अम्मी को सारी बात बताने वाली थी कि नशीफा कहने लगी तभी तो मैं कहती थी कि शिवानी सुबह से इतना बन ठन कर कहां जाती है । नशीफा के चुप होते ही सलमा आखिर दूसरे मजहब की है । सब ने कुछ न कुछ कहा लेकिन किसी की भी बात उतना बुरा नहीं लगा जितना जितना की सलमा के बातों ने मुझे हिला कर रखा दिया । इसी बीच मोबाइल की घंटी फिर से बजनी शुरू हो गई । इस आवाज ने आग में घी डालने का काम किया अम्मी ने और भी बुरे शब्द निकालने शुरू कर दिए । होगा किसी यार का फोन, जो बार-बार कर रहा होगा । अब मुझसे रहा नहीं गया । बस और नहीं जब से सुनाए जा रहे हो मेरी भी बात सुनो । सलमा ने कहा अब और क्या सुनने को रहा सब कुछ तो सामने है । अम्मी ने कहा शिवानी अब हम ऐसी लड़की को यहां नहीं रख सकते जिसकी चाल चलन खराब हो । हमारे घर दो और जवान लड़की हैं जिनकी शादी करनी है । अब तुम अपना अलग ठिकानी देख लो । इस बात से तो मै एकदम सहम गई । मुझे रात भर नींद नहीं आई बस यहीं सोचती रही कहां जाऊंगी, किसके पास जाऊंगी । इन्ही सब बातों से रात भर परेशान रही और रोती रही । सुबह हुई सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे । मैने सोचा कोई मुझसे बात करे, लेकिन किसी ने मुझसे बात नहीं की । मैं भी किसी से कुछ कहे बिना अपने काम की तलाश में निकल गयी ।लेकिन उससे पहले उस सज्जन का मोबाइल वापस करना था । मैं बिना खाए-पिये जल्दी-जल्दी उस नीम के पेड़ के पास पहुँची जहां पर वह कम्पनी है । जैसे ही मैं पेड़ के पास पहुँची ही थी कि मोबाइल फिर से बजना शुरू हो गया । मैने झट से मोबाइल उठाया उधर से आवाज आई - हलो मैने हलो से जवाब दिया । सामने वाले व्यक्ति ने बड़े सज्जनता पूर्वक कहा अ देखिए मेरा मोबाइल कहीं गुम हो गया था । यह आपके पास है प्लीज मेरा मोबाइल वापस कर देंगी । मैने कहा हां सर, यह मोबाइल मेरे पास ही है । जहां गिरा था, मैं वहीं खड़ी हूँ ।

आधे घंटे के बाद वही, बड़ी सी गाड़ी आकर रूकी । उसमें से कोट-टाई पहने व्यक्ति बाहर आया । मैं गाड़ी के पास गई और कहा - सर यह आपका मोबाइल । उन्होने मुस्कराते हुए मोबाइल लेते हुए कहा ओ थैक्यू.. मैं भी यू वेलकम बोलकर वापस चल पड़ी । इतने में पीछे से आवाज आयी - अरे रूकिये क्या नाम है आपक . मैने कहा जी शिवानी तिवारी ओ हो मैं दीनानाथ थर्मा । इस मल्टी प्लेक्स कम्पनी का मालिक । तो तुम क्या करती हो । मैने बड़ी सहजता से उसे जवाब दिया, सर मैं अभी काम की तलाश कर रही हूँ । उस सज्जन ने अपने कोट के जेब से एक कार्ड निकालकर दिया और कहा - अच्छा इसे रखिए । हमारी एक और कम्पनी है जहां कर्मचारियों की आवशयकता है । वहां मेरा बेटा होगा उनसे मिल लेना । मैं उनको फोन कर बता देता हूँ । मैने कार्ड लिया और थैक्यू सर बोलकर कार्ड पर लिखे पते पर चली गई । कुछ देर बाद वो कम्पनी मिल गई । जैसे ही कम्पनी में घुसने लगी, वहां खड़े गार्ड ने रोक लिया । कहने लगा आप अन्दर नहीं जा सकते । लेकिन कार्ड को देखते ही मुझे अन्दर जाने दिया । मैं तो एकदम घबराई हुई थी कि क्या होगा । बास के केबिन में जाने से पहले मैने पूछा - सर मे आई कम इन । बास ने कहा- हां अन्दर आ जाऔ । अन्दर जाते यंग बास एकदम से मेरी ओर देखने लगे । शायद शिवानी के खूबसूरत चेहरे से नजर नहीं हट रही थी । शिवानी थी ही बेहद खूबसूरत, सुंदर चेहरा, लम्बे-लम्बे बाल, सुंदर नाक नक्श । अच्छा आप ही है शिवानी तिवारी आइये बैठिए । पापा ने आपके लिए ही फोन किया थे । मैने कहा जी सर । उस यंग बास ने कहा देखिए कम्पनी के कुछ रूल्स हैं । वो आपको मानना होगा तभी आप कम्पनी की कर्मचारी बन सकते हैं । मैने आखिर पूछ ही लिया सर क्या रूल्स होंगे । बास ने कहा हमारे मैनेजर आपको बता देंगे, ठीक है आप जा सकती है । जी सर बाहर आते ही रिसेप्शनिस्ट ने मुझे मैनेजर से मिलाया । मैनेजर ने बताया कि आपको कम्पनी के क्वाटर में रहना पड़ेगा जहां कम्पनी के सभी कर्मचारी रहते हैं और आपका वेतन 12 हजार रू. होगा । यह सुनकर मैं तो आवाक रह गई । क्या वास्तव में ये सारी खुशियां मुझे एक साथ मिल रही है । मैं खुशी-खुशी कम्पनी से बाह आ गई और जल्दी-जल्दी घर में यह बाते बताने अपने कदम बढ़ाने लगी । जैसे ही घर पास आया मैं घर दौड़कर अंदर आ गई और अम्मी को जोर से आवाज दी अम्मी ।

मेरी आवाज सुनकर नशीफा, सलमा अम्मी तीनों कमरे से बाहर आये लेकिन तीनों के चेहरे पर वही उदासी और गुस्से का भाव अभी था । मैने अम्मी की बांह पकड़कर खुशी से कहा -अम्मी मुझे अच्छी कम्पनी में नौकरी मिल गई और मालूम है मेरी तनख्वा कितनी है । 12 हजार रू.... और तो और कम्पनी के तरफ से मुझे एक फ्लैट मिला है । जहां हम सब एक साथ रहेंगे । अम्मी अपनी खामोशी तोड़कर बोली हम सब नहीं केवल तुम रहोगी । हमें नहीं रहना तुम्हारे साथ । मैने भी हिम्मत करके सबको कहा नहीं आज तो आप सबको मेरी बात सुननी होगी और माननी होगी । आप लोगों का गुस्सा मेरे ऊपर क्यों है वे मोबाइल ना । वो मोबाइल मुझे एक सज्जन के गाड़ी में चढ़ते हुए गिर जाने पर मिला था । जिसे मैने आवाज देकर रोकने की कोशिश की । लेकिन वो जब तक जा चुके थे और आप सबने गलत समझ लिया । मैं दूसरे दिन मोबाइल वापस करने गई तो उसने इसके बदले अपनी कम्पनी में नौकरी दी । मैने सलमा से कहा हां सलमा मैं हिन्दू हूँ लिकिन यही हिन्दू बहन आप सबको अपने साथ लेने आयी है । बहन नशीफा मैं कभी बन ठन कर नहीं जाती । आप दोनों की पढ़ाई मेरी तरह रूक ना जाए इसलिए रोज भूखी प्यासी काम की तलाश में जाती थी । न ही मेरा कोई यार है जिसे मैं मिलने जाती । अम्मी कहने लगी बस बेटा और नहीं अम्मी के आँख से आंसू निकल रहे थे । अम्मी बांहें फैलाकर बोली बेटी हमें माफ कर दो । मैं अम्मी के गले लग गई । नशीफा और सलमा ने भी मुझे गले से लगा लिया । और सबने कहा शिवानी हमें माफ कर दो ।
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(साभारः समाचार पत्र - नवभारत - सुरूचि में प्रकाशित दिनांक 29 जून 2011)


संजय मार्टिन , बूढ़ा तालाब रोड,बालोद, जिला-दुर्ग (छ.ग.) मोबा. 9589699163

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

हमारी पुरातन धरोहर-जगन्नाथपुर का प्राचीन शिव एवं गणेश मंदिर (13-14वीं शताब्दी)

आधुनिक परिवेश में,आज के चकाचौंध की इस दुनिया में फैशन के नाम पर सावन के महिनें में, गणेश प्रतिमा स्थापना या नवरात्रि में दुर्गा प्रतिमा स्थापना, दशहरा के नाम पर लाखों-करोड़ों रूपये खर्च कर दिये जाते हैं । परंतु हम अपनी पुरातन महत्व की मंदिरों एवं मूर्तियों को संरक्षित नहीं कर पाये । कुछ दिनों पूर्व मुझे ग्राम जगन्नाथपुर से होते हुए बालोद जाना था ग्राम जगन्नाथपुर मेरे ग्राम परसतराई से दक्षिण दिशा में करीब 15 किमी. की दूरी पर स्थित है और बालोद से उत्तर की ओर 12 किमी की दूरी पर स्थित है इस ग्राम से गुजरते हुए मुझे राज्य शासन द्वारा लगाया गया एक सूचना पटल दिखाई दिया जिसे मैंने उत्सुकतावश रूककर देखना चाहा । मैंने अपने दुपहिया वाहन से कुछ देर रूककर प्राचीन मंदिर, मंदिर में स्थित भगवान गणेश जी एवं शिवलिंग के दर्शन किये । यह मंदिर 13-14वीं शताब्दी का है।


जिन्हें छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारक पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1964 का (12) तथा नियम 1976 के अधिन राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। ग्राम के प्राचीन तालाब तट पर स्थित यह मंदिर शासन एवं लोगों की उपेक्षा का शिकार है । और धीरे-धीरे खंडहर होते जा रहा है। मंदिर की दीवारों की छत व खंभों में दरारें पड़ गई है।


जीर्णोद्धार कार्य पुराने मंदिरों के अवशेषों से किया गया है किए गए प्लास्टर भी उखड़ रहे है देखरेख न होने के कारण शरारती तत्वों द्वारा भी इसे नुकसान पहुँचाया जा रहा है जो मंदिर की प्रतिमा,छत एवं खंभो को भी क्षतिग्रस्त कर रहे है किसी-किसी के द्वारा अपने नाम या अपनी प्रेमी-प्रेमिका के नाम को लिखा गया है । कुल मिलाकर राज्य शासन एवं संबंधित विभाग द्वारा इस प्राचीन महत्व की मंदिर को संरक्षित घोषित कर अपना पल्ला जरूर झाड़ लिये है परंतु वास्तविकता में यह प्राचीन मंदिर अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है ।

दुनिया में कहां-कहां...


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