बुधवार, 11 नवंबर 2009

छत्तीसगढ़ी कविता .......................... दँदर गेन ददा .

......... दँदर गेन ददा .
जिनगी बोझहा बिकट के , दँदर गेन ददा ।
कतका रोवन रोवई मा, कँदर गेन ददा ।।
उबरे खातिर ए पीरा ले उदिम करेन ।
सरी उदिम ला करके, लथर गेन ददा ।।
दाऊ बाढ़ी का देतिस , नई दाना मिलिस ।
ऊँखर पइंया ला धर के, घिलर गेन ददा ।।
लड़बो हक के लड़ई, कहिके कम्मर कसेन ।
दुवे दिन के लड़ई मा, ढिलर गेन ददा ।।
काय सपना कलेवा के, हम हा देखन ।
सुक्सा भाजी बर घलो, सुरर गेन ददा ।।
परकम्मा पिरित बर, हम जग के करेन ।
चारो कोती मया बर, किंजर गेन ददा ।।
कतका करतेन साहन, 'पकलू' तहीं बता ।
फाँदा-फाँसी मा चढ़के, झुलर गेन ददा ।।


मिथलेश शर्मा निसार
(कवि निवास) अरजुन्दा
जिला-दुर्ग (छ.ग.) 491225
मो. 9755057245

शनिवार, 7 नवंबर 2009

सूपा मन चुप बइठे हें अऊ, चलनी बिक्कट बोलत हे ।

सूपा मन चुप बइठे हे अऊ,
चलनी बिक्कट बोलत हे
कोइली ताकत बइठे हे,
अऊ कागा आम खखोलत हे ।।
छाती के तै दूध पियाए ,
लइका के बड़ साद रहिस ,
उही दूध ला पीके बेटा,
छाती ला अब छोलत हे
सूपा मन ...........
मटिया कस सब खुसर-खुसर,
हमला जी फोकला कर दिन
परे बिपत में उही मनखे मन अब ,
हमला ठोलत हे ।।
सूपा मन ...........
दू दिन रहिके चह देहूँ मैं ,
अइसन आस बंधा रहिगे
मार कुंडली फन काढ़त हे ,
दुख हालत डोलत हे ।।
सूपा मन ...........
दू कउड़ी अउकात नही तेन ,
सान देख ले 'पकलू' अब
हमर लिलामी होत देखके ,
अउने-पउने मोलत हे ।।
सूपा मन ...........

मौलिक/अप्रकाशित/अप्रसारित


मिथलेश शर्मा निसार
(कवि निवास) अरजुन्दा
जिला-दुर्ग (..) ४९१२२५

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